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वीरगाथा काल किसे कहते हैं, परिभाषा, विशेषताएं

वीरगाथा काल

आदिकाल को वीरगाथा काल या सामंत युग चारण युद्ध आदि नाम से पुकारा जाता है। यह हिंदी साहित्य का प्रथम काल है । हिंदी का प्रारंभिक काल इसी युग में देखने को मिलता है। राजनीतिक परिस्थिति, इस युग का इतिहास देखने से मालूम होता है कि भारतवर्ष छोटे-छोटे राज्यों में बटा हुआ था।

 वीरगाथा काल

यह हिंदू काल था।  सभी राज्यों के राजा हिंदू राजा थे।  उत्तर भारत में मुसलमानों के आक्रमण प्रारंभ हो चुके थे।  हिंदू राजा आपस में लड़ा करते थे।  लड़ाई राज्य विस्तार के लिए होता था। स्वयंबर की प्रथा थी कभी-कभी कन्या का अपहरण करने के लिए भी युद्ध होता था।  शौर्य  प्रदर्शन के उद्देश्य से निर्मित होता था। यह युग लड़ाई का समय था । युद्ध इस युग का नित्य कर्म था ।

चारण व भाट सैनिक या सेनापति होते थे।  राज दरबारों में वीरता की कविताएं लिखते तथा युद्ध मे लड़ते भी थे।

धार्मिक स्थिति

बौद्ध धर्म पतन के समीप था।  इसका विकृत रूप वर्तमान का योग के नाम पर आडंबर रह गया था।  विदेशी आक्रमणकारी मंदिरों को तोड़ते तथा लूटते थे सिद्ध तथा नाथों का प्रचलित था।

सामाजिक परिस्थिति

युद्ध और संघर्ष में जीवन अस्त व्यस्त हो गया था। समाजिक व्यवस्था समाप्त हो गया था। कर्मकांड और आडंबर की बहुलता के कारण धर्म भी मनुष्य को सही दिशा देने में असमर्थ था।

युग का नामकरण

आदि का अर्थ होता है प्रारंभ हिंदी साहित्य का प्रारंभिक युद्ध होने के कारण इसे आदिकाल के नाम से जानते हैं।

इस युग के कवि चारण वा भाट थे । वे राज आश्रित थे अपने आश्रय दादा राजाओं के दरबार में रहते तथा वीरता पूर्ण रचनाएं लिखकर सैनिकों का उत्साहवर्धन करते थे।

यह युद्ध क्षेत्र में भी जाते थे। जिस तरह वीर रस पूर्ण काव्य की परंपरा चल पड़ी वीरता पूर्ण काव्य की सामान्य प्रवृत्ति के कारण इस युग को वीरगाथा काल का नाम दिया गया । अर्थात इस काल में जो जो काव्य ग्रंथ प्राप्त होते हैं वे प्रायः वीरों की गाथा से संबंधित होता है।  इसलिए आदिकाल को वीरगाथा काल के नाम से जाना जाता है।

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वीरगाथा काल की विशेषता

  • संदिगध रचना- इस काल में उपलब्ध होने वाली प्रायः  वीर गाथाओं की प्रमाणिकता संदिग्ध है।  खुमान रासो , बीसलदेव रासो पृथ्वीराज रासो , तथा परमाल रासो सभी रासो काव्य की प्रामाणिकता संदिग्ध है ।इसमें ऐतिहासिकता का अभाव है ।इनके मूल रूप में बहुत परिवर्तन हुए हैं।
  • युद्धों का सजीव वर्णन – वीरगाथा काल के कवियों ने युद्धों का आंखों देखा हाल लिखा है। इतना सजीव वर्णन कदाचित संस्कृत साहित्य में भी नहीं मिलता है। यह चारण कवि युद्ध भूमि में जाया करते थे और युद्ध का सजीव वर्णन करते थे।
  • वीर और शृंगार रस की प्रधानता-  इन वीर गाथाओं में वीर तथा श्रृंगार रस का अद्भुत मिश्रण होता था। वीर रस का सुंदर  तरीके से उपयोग हुआ होता है।
  • संकुचित राष्ट्रीयता – चारण कवियों ने केवल अपने आश्रित राजाओं  का ही गुड़गान किया है। देशद्रोही जयचंद का भी गुणगान किया गया है।  छोटे-छोटे राज्यों को ही राष्ट्र समझा जाता था।
  • छंदों का विविध प्रयोग – दोहा, तोमर गाथा  रोला, उलाला ,कुंडलियां आदि अनेक छंदों का प्रयोग इस काल की विशेषता कही जा सकती है। छंदों का इतना विविध प्रयोग पूर्व के साहित्य में कभी नहीं हुआ।
  • डिंगल और पिंगल भाषा – डिंगल भाषा अर्थात साहित्यिक राजस्थानी भाषा का प्रयोग इस काल विशेषता कहीं जा सकती है।

वीरगाथा काल की रचनाएं

  1. चंदरबरदाई – पृथ्वीराजरासो
  2. नरपति नाल्ह – बीसलदेव रासो
  3. दलपति विजय – खुमान रासों
  4. जगनिक – आल्हा खंड
  5. अमीर खुसरों – पहेलियाँ तथा गीत
  6. राजशेखर – संदेश रासक

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