जलवायु किसे कहते हैं, जल परिवर्तन क्या है ?
जलवायु किसे कहते हैं:-किसी भी स्थान देश अथवा प्रदेश के भौगोलिक अध्ययन में जलवायु का विशेष महत्व होता है। जलवायु न केवल वहां की भूमि मिट्टी वनस्पति कृषि एवं जीव जंतुओं पर अपना प्रभाव डालती है । और मानव के आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं संस्कृति क्रियाकलापों में सहयोग करती है ।इस प्रकार भौगोलिक पर्यावरण के समस्त तत्वों में जलवायु सर्वशक्तिमान है।
मौसम एवं जलवायु से आशय
मौसम से अभिप्राय किसी भी स्थान विशेष के किसी निर्दिष्ट समय की वायुमंडलीय स्थिति तथा तापमान वायुदाब हवा आद्रता एवं वर्षा से होता है। वायुमंडल की उपयुक्त दशाओं को ही जलवायु और मौसम के तत्व कहते हैं। वायुमंडल के तत्व कहीं पर भी स्थाई नहीं होते स्थान और समय के अनुसार इनमें परिवर्तन होता रहता है और किसी स्थान की लघु समय की वायुमंडल की स्थिति के आधार पर और वायुमंडलीय दशाओं के सम्मिलित रूप को मौसम कहा जाता है।
जबकि जलवायु किसी लंबे समय की मौसम संबंधी दशाओं का मिश्रण होता है। दूसरे शब्दों में किसी स्थान के मौसम की दीर्घकालिक औसत वायुमंडलीय दशाओं को जलवायु कहते हैं। भारत की जलवायु मानसूनी है, भारत की विशेष भौगोलिक स्थिति एवं विशाल आकार और विस्तार के कारण यहां यहां जलवायु की भिन्न-भिन्न अवस्था में परिवर्तन होता रहता है।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं
- अक्षांशीय स्थिति – भारत की जलवायु को प्रभावित करने में देश की अक्षांशीय स्थिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत उत्तरी गोलार्ध में एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है, कर्क रेखा इसके मध्य से होकर गुजराती है। भारत के इस विशिष्ट स्थिति के कारण इसके दक्षिणी भाग में उष्णकटिबंधी जलवायु तथा उत्तरी भाग में महाद्वीपीय जलवायु पाया जाता है।
- समुद्र से दूरी – कर्क रेखा भारत को उष्ण तथा पोषण दो कटिबंध में विभाजित करता है, लेकिन भारत के तापमान के वितरण पर समुद्र से दूरी का स्पष्ट प्रभाव देखा जाता है । भारत के उत्तरी मैदान में विषम जलवायु होने का यही कारण है।
- यहां की भू रचना -न केवल तापमान अपितु वर्षा को भी प्रभावित करता है, देश के उत्तरी भाग में पूरब से पश्चिम को फैला हुआ विशाल हिमालय पर्वत शीत ऋतु में उत्तर से आने वाली अति ठंडी हवाओं को रोक कर भारत को अत्यधिक शीतल होने से बचाता है । यह पर्वत मानसून पवन को रोककर वर्षा में भी मदद करता है।
- जल और स्थल का वितरण– भारतीय प्रायद्वीप के पूर्व में बंगाल की खाड़ी पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर स्थित है, भारत उत्तर में एशिया महाद्वीप से जुड़ा हुआ है। जल और स्थल के इस विन्यास के कारण ग्रीष्म ऋतु में भारत का उत्तर पश्चिमी मैदानी भाग अत्यधिक गर्म होकर निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। यह निम्न वायुदाब का क्षेत्र हिंद महासागर से आने वाली पवनों को आकर्षित करता है, शीत ऋतु में यही भाग अत्यधिक ठंडा होकर उच्च वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है । परिणाम स्वरूप इस समय पवन स्थल से जल की ओर चलने लगती है । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यही जल और स्थल पवने ही मानसून पवन हैं, जो भारत की जलवायु को अधिक प्रभावित करती हैं , समुद्र से आने वाली हवा ही भारत में वर्षा करती हैं।
- ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली हवाएं – भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली जेट स्ट्रीम पवनों की भी भारत की जलवायु दिशाओं के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शीत ऋतु में पश्चिमी जेट स्ट्रीम पवन उत्तरी भारत के ऊपर बहती है। किंतु वर्षा ऋतु में हिमालय के पर तिब्बत के पर्वत पर बहने लगती है।
- मानसूनी हवाएं – भारत व्यापारिक पवनों के प्रवाह क्षेत्र में आता है । किंतु यहां की जलवायु पर मानसूनी पवनों का व्यापक प्रभाव देखा जाता है। यह हवाएं ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चला करती हैं। मानसून हवाएं के इस परिवर्तन के साथ भारत में मौसम और ऋतुओं का भी परिवर्तन हो जाता है।
मानसून से आशय
भारत की जलवायु मानसूनी है मानसूनी जलवायु को समझने के लिए मानसून का आशय समझना आवश्यक है। मानसून वस्तुतः धरातल पर चलने वाली हवाएं हैं, जो ग्रीष्म और जाड़े की ऋतुओं में अपनी परवाह दिशा बदल देती है। मानसून मूल रूप से अरबी भाषा के maosim(मौसिम ) शब्द से बना है। जिसका तात्पर्य ऋतु अनुसार हवाओं के चलने से होता है।
इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब सागर पर चलने वाली हवाएं के लिए किया गया था। जो की 6 महीना उत्तर पूर्व दिशा से और 6 महीने दक्षिण पश्चिम दिशा से चला करती हैं। इसी आधार पर संसार के इन सभी भागों की हवाओं को जिनकी दिशाओं में ऋतुवत परिवर्तन हो जाता है मानसून कहा गया है।