Skip to content

मीरा बाई की रचनाएँ, जीवन परिचय, भाव पक्ष, कला पक्ष, साहित्य में स्थान

मीराबाई की रचनाएँ | Meera Ki Rachnaye | Mirabai Ki Rachnaye

जीवन परिचय

मीराबाई का जन्म मारवाड़ के कुड़की नाम के गांव में 1498 में एक राज परिवार में हुआ थाउनके पिता का नाम रतन सिंह राठौर था. जो मेड़ता के शासक थे वह एक वीर योद्धा थे. मीराबाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी. उनके पिता रतन सिंह का अधिक समय युद्ध में व्यतीत होता था

जब मीरा छोटी थी तब उनकी माता का निधन हो गया था . उनका लालन-पालन उसके दादा राव दूदा जी की देखरेख में हुआ था. जो योद्धा होने के साथ-साथ भगवान विष्णु के बड़े उपासक व भक्ति भाव से ओतप्रोत थे.

मीरा बाई कृष्ण भक्त थी । और वे कृष्ण को ही अपना सब कुछ मानती थी। मीरा ने अपने से कुछ लिखा नही। । कृष्ण के प्रेम में मीरा भजन या गीत गाया करती थी ।जो गाया वो बाद में पद के रूप मे संकलित हो गए । जिनमे से कुछ महत्व पूर्ण रचना है । जो नीचे दिया गया है।

रचनाएँ

  1. मीरा पदावली
  2. राग गोविंद
  3. गीत गोविंद
  4. गोविंद टीक
  5. राग सोरठा
  6. नरसीजी रो मायारा
  7. मीरा की मल्हार

भाव पक्ष

मीरा ने गोपियों की तरह कृष्ण को अपना पति माना और उनकी उपासना माधुर्य भाव की भक्ति पद्धति है । मीरा का जीवन कृष्णमय था और सदैव कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी ।

मीरा ने – मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरों न कोई, जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई । कहकर पूरे समर्पण के साथ भक्ति की ।

मीरा के काव्य में विरह की तीव्र मार्मिकता पाई जाती है । विनय एवं भक्ति संबंधी पद भी पाएँ जाते है । मीरा के काव्य में श्रंगार तथा शांत रस की धारा प्रवाहित होती है ।

कला पक्ष

मीरा कृष्ण भक्त थी । काव्य रचना उनका लक्ष्य नहीं था । इसलिए मीरा का कला पक्ष  अनगढ़ है साहित्यिक ब्रजभाषा होते हुए भी उस पर राजस्थानी, गुजराती भाषा का विशेष प्रभाव है ।

मीरा ने गीतकाव्य की रचना की और पद शैली को अपनाया शैली माधुर्य गुण होता है । सभी पद गेय और राग में बंधा हुआ है । संगीतात्मक प्रधान है ।  श्रंगार के दोनों पक्षों का चित्रण हुआ है ।

रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग मिलता है । सरलता और सहजता ही मीरा के काव्य के विशेष गुण है ।

भाषा शैली

मीरा की भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रज है । उनकी भाषा का कोई रूप नहीं है । कई स्थानों का भ्रमण करने के कारण उनकी भाषा में कई स्थानों का प्रभाव दिखाई पड़ता है । लिखित रूप में न होने के कारण इनकी भाषा कई स्थानों मे बदलती रही है। आज जिस रूप में मीरा के पद प्राप्त होते है । उनकी उनकी भाषा बहुत सरल और सुबोध है ।

मीरा की शैली प्रसाद गुण युक्त है । उनकी कविता का अर्थ सुनते ही समझ समझ में आ जाता है । उनकी भाषा में सरलता है । इसी कारण मीरा का काव्य इतना लोकप्रिय है ।

मीराबाई का साहित्य में स्थान

मीरा बाई भक्ति काल की कृष्ण भक्ति धारा की श्रेष्ठ कवियत्री है । गीता काव्य एवं विरहकाव्य की दृष्टि से मीरा का साहित्य में उच्च स्थान है ।

इन्हें भी पढ़े

नाटक किसे कहते है

कहानी किसे कहते है

उपन्यास किसे कहते है

नाटक और कहानी में अंतर

जीवनी किसे कहते है

रीतिकाल किसे कहते है

काव्य किसे कहते है

कबीर दास का भाव पक्ष कला पक्ष

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *