श्रृंगार रस
सहृदय के हृदय में रति नामक स्थाई भाव के उत्पन्न होने पर जिस रस की उत्पत्ति होती है उसे श्रृंगार रस कहते हैं इसके दो भेद होते हैं संयोग श्रृंगार रस और वियोग शृंगार रस।
उदाहरण
कहत नटत , रीझत, खिझत, मिलत, खिलत , लॉजियात।
भरे मौन में करत है, नैनन ही सों बात ।
हास्य रस
सहृदय के हृदय में स्थित हास नामक स्थाई भाव का जब विभाव और अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है । तब वहाँ हास्य रस होता है ।
उदाहरण
इस दौड़ धूप में क्या रखा , आराम करो आराम करो।
आराम जिंदगी की कुंजी, इससे ना तपेदिक होती।
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में राम छिपा, जो भव बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो, विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूं , मेरे अनुभव से काम करो।