श्रृंगार रस
परिभाषा सहृदय के हृदय में रति नामक स्थाई भाव के उत्पन्न होने पर जिस रस की निष्पत्ति होती है उसे श्रृंगार रस कहते हैं श्रृंगार रस के प्रकार संयोग श्रंगार एवं वियोग श्रृंगार।
संयोग श्रृंगार– जहां पर नायक नोएडा के सहयोग का वर्णन हो वहां संयोग श्रृंगार रस होता है।
उदाहरण
राम को रूप निहारती जानकी , कंगन के नग के परिछाहीं।
माते सबै सुधि भूलि गई , कर टेकि रही पल टारत नाही।।
इस उदाहरण में स्थायी भाव रति ।
संचारी भाव – पलकों का झपकना स्मृति हीनता आदि।
अनुभाव -सीता के द्वारा राम के रूप को एक टक देखना।
विभाव -राम सीता।
उदाहरण 2
कहत नटत , रीझत , खीझत, मिलत,खिलत लॉजियात।
भरै मौन में करत है , नैनन ही सो बात ।।
स्थाई भाव -रति।
अनुभाव – नेत्रो से बात करना ।
संचारी भाव -लज्जा।
आश्रय – नायक।
आलंबन – नायिका।
उदीपन – नायिका का सौंदर्य ।
वियोग श्रृंगार
जहां पर नायक नायिका के विरह का वर्णन हो वहां पर वियोग श्रृंगार रस होता है।
उदहारण5
विरह वियोग श्याम सुंदर के ठाडे क्यों न जरे।
ससा स्यार औ बनके पखेरू धिक धिक सब निकरे।।
स्थाई भाव – रति ।
संचारी भाव- खीझ धिक्कार आदि।
अनुभाव – गोपियों के विषादमय कथन।
विभाव – आलम्बन -आश्रय- गोपी -कृष्ण।