हास्य रस
सहृदय के हृदय में स्थित हास नामक स्थाई भाव का जब विभाव , अनुभाव, संचारी भाव के साथ संयोग होता है । तब वह हास्य रस कहलाता है। हास्य रस में हसी तथा व्यंग्य संबंधी वर्णन होता है ।
अथवा
किसी की विचित्र वेशभूषा हाव भाव या कार्य को देखकर हसी आती है वहां हास्य रस होता है ।
उदाहरण
विंध्य के वासी उदासी तपोवृतधारी महाबिनु नारी दुखारे।
गौतम तीय नारी तुलसी सो कथा सुन ये मुनि वृन्द सुखारे।।
है है शिला सब चंद्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहरे ।
कीन्ही भली रघुनायक जु करुणा कर कानन को पगु धारे।।
स्थाई भाव -हास।
संचारी भाव- हर्ष, आलस, चपलता ।
अनुभाव- मुस्कान, ऋषियों का हाँथ जोड़ना।
विभाव- आलम्बन , आश्रय, विषय।
उद्दीपन – ऋषियों की प्राथना , राम की प्रसंशा , गौतम नारी की कथा।
उदाहरण
इस दौड़ धूप में क्या रखा , आराम कसरो , आराम करो।
आराम जिंदगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंद है , तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में राम छिपा , जो भव बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो, विरला ही योगी होता है ।
इसलिए तुम्हे समझता हूं , मेरे अनुभव से काम करो।
स्थाई भाव – हास।
संचारी भाव- हर्ष ।
अनुभाव -हसना।
विभाव – अलसी व्यक्ति ।