प्रगतिवाद का दूसरा नाम उत्तर छायावादी युग भी है। जो विचारधारा राजनीतिक क्षेत्र में साम्यवाद सामाजिक क्षेत्र में समाजवाद है ।और दर्शन में द्वंदात्मक भौतिकवाद है वही साहित्य क्षेत्र में प्रगतिवाद है। प्रगतिवादी साहित्य का मूल आधार मार्क्सवादी विचारधारा है इस विचारधारा में गरीबों के प्रति विशेष सहानुभूति तथा पूंजी पतियों के प्रति आक्रोश है।
प्रगतिवाद की विशेषताएं
- शोषक के प्रति घृणा और शोषित के प्रति करुणा प्रगतिवाद की मुख्य विशेषता है। पूंजीवादी व्यवस्था शोषण को जन्म देती है। सामाजिक विषमता को पैदा करती है एवं शोषकों का अंत होना चाहिए इस पर दिनकर जी कहते हैं।
श्वानों को मिलता वस्त्र दूध ,भूखे बच्चे अकुलाते है।
युवती के लज्जा वसन बेच ,जब ब्याज चुकाया जाते हैं।
मालिक जब तेल फुलेल पर, पानी सा द्रव्य बहाते हैं।
पापी महलों का अहंकार, देता मुझको तब आमंत्रण है।
- यथार्थ का चित्रण – यथार्थ का चित्रण करना प्रगतिवादी साहित्य का स्वरूप रहा है राज्य में समाज में जो कुछ घटित होता है। उसका साफ-साफ बयान करना इसका लक्ष्य है।
बाप बेटा बेचता है, भूख से बेहाल होकर।
बाप बेटा बेचता है, धर्म धीरज प्राण खोकर।
हो रही आनरीति ,बर्बर राष्ट्र सारा देखता है।
- रूढ़िवाद का विरोध – प्रगतिवाद रूढ़िवाद का कट्टर विरोधी है साथ ही भाग के बाद आत्मा ,परमात्मा ,स्वर्ग, नरक के अस्तित्व में भी प्रगतिवाद का विश्वास नहीं है।
- खूनी क्रांति में विश्वास – साम्यवादी व्यवस्था की प्रतिष्ठा एवं शोषण के अंत के लिए प्रगतिवादी कवि खूनी क्रांति का आवाहन करते हैं। उन्हें हृदय परिवर्तन की नीति पर विश्वास नहीं
- व्यक्तिवाद के विरुद्ध विद्रोह– प्रगतिवाद छायावादी व्यक्ति वास्ता के विरुद्ध विद्रोह है। प्रगतिवाद रचना में व्यक्तिगत सुख ,दुखिया, रंग, आत्म ,अनुभूतियों का चित्रण नहीं है अपितु सामाजिक भाव की अभिव्यंजना है।
- नारी मुक्ति का स्वर – नारी मुक्ति का स्वर भी प्रगति वादी रचनाओं में मुखरित हुआ है । इससे युग से शोषित प्रताड़ित नारी को पुरुष समाज के सामने प्रतिष्ठित करने का स्वर है।
- माकसर्वाद का गुणगान करना भी प्रगतिवाद के प्रवृत्ति रही है।
- सीधी सादी भाषा– सीधी सादी भाषा में साफ-साफ बात करना प्रगतिवाद साहित्य का स्वभाव रहा है इसमें कलात्मक की ओर कम ध्यान दिया गया है । इस तरह हिंदी काव्य को प्रगतिवाद ने जीवन चेतना प्रदान की मानवतावाद की प्रतिष्ठा की प्रेमचंद इस धारा के अग्रदूत रहे हैं।
प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं
- श्री रामधारी सिंह दिनकर- कुरुक्षेत्र ,रेणुका, ,संस्कृति के चार अध्याय।
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला – कुकुरमुत्ता बेला ,नए पत्ते ,तुलसीदास।
- नागार्जुन- भस्मासुर, सतरंग ,पंखा ,वाली, प्रेत का बयान।
- शिवमंगल सिंह – प्रलय ,विश्वास बढ़ता ही गया ,धरती की बारात।
- गजानन माधव मुक्तिबोध- चांद का मुंह टेढ़ा है, एक साहित्यिक की डायरी।
- सुमित्रानंदन- पंत गुंजन।
- बालकृष्ण शर्मा – कुमकुम।