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नाटक किसे कहते है, नाटक के प्रकार

नाटक

नाटक दृश्य काव्य का एक भेद है । यह अभिनय गद्य विधा है यह एक ऐसा साहितय रूप है जिसमे जिसमें रंगमंच पर पात्रों के द्वारा किसी कथा का प्रदर्शन होता है । यह प्रदर्शन अभिनय, दृश्य , सज्जा , सवांद नृतय, गीत आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है ।

नाटक के 6 तत्व होते है

  1. कथावस्तु
  2. चरित्र चित्रण
  3. सवांद योजना
  4. देश काल
  5. उद्देश्य
  6. भाषा शैली

भारतेन्दु युग

नाटक के विकास की कहानी बहूत पुरानी है इनका जन्म वेदों के गर्भ से माना जाता है । नाटक को पांचवा वेद भी कहा गया है । संस्कृत नाटक की परंपरा तो बहूत पुरानी है । किन्तु हिन्दी में नाटक का आरंभ भातेन्दु युग से हुआ है । कुछ फारसी थेयटर कंपनी निम्न स्तर के नाटक का प्रदर्शन कर रही है । भारतेन्दु जी से यह देखा नहीं गया । उन्होने नाटक खुद लिखे और लोगों को लिखने के लिए उत्साहित किया था।

भारतेन्दु कृत सत्य हरिश्चंद्र नाटक ने तो धूम मचा दी । राजा लक्ष्मण सिंह ने संस्कृत के शकुंतला नाटक का किया जो खूब लोकप्रिय हुआ । इस युग के नाटक की तीन प्रवृति थी – धार्मिक और पौराणिक विषय , संस्कृत के नाटक का अनुवाद एवं नाटक में पद्दों की भरमार ।

प्रसाद युग

प्रसाद युग नाटक का दूसरा विकास सोपान है । जयशंकर प्रसाद ने ऐतिहासिक कथावस्तु लेकर , अनेक नाटकों की रचना की । यथा – अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रवस्वामिनी, आदि । हरीकृष्ण प्रेमी, सेठ गोविंदा दास, उग्र उदयशंकर भट्ट आदि नाटक कारों ने नाटक को नया मोड दे दिया , नया आयाम दिया । सामाजिक व राष्ट्रप्रेम संबंधी विषय लाएँ । भट्ट जी के भाव नाट्य खूब सराहे गए ।

प्रस्दोत्तर युग

नाट्य के विधा के विकास का तृतीय सोपान है । इस युग के नाटकों पर पश्चमी प्रभाव पड़ा । नाट्य काला का समुचित विकास हुआ । लक्ष्मी नारायण मिश्र ने राजयोग, सिंदूर की होली आदि समस्या प्रदान नाटक लिखे । भूनेश्वर प्रसाद एवं राजकुमार वर्मा ने एकाँकी नाटक लिखे । उपेंद्रनाथ, अशक जगदीश चंद्र माथुर, धर्मवीर भारती, आदि इस युग के प्रमुख नाटककार हुये ।

धर्म वीर भारती के अंधायुग तथा मोहन राकेश के आषाढ़ का एक दिन लहरों का राजहंश आदि नाटक के विकाश की चरमता के घोतक है ।

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