एकांकी
एकांकी ऐसी विधा है जो एक अंक में रचित होता है। इसमें एक ही घटना तथा एक प्रभाव होता है । एकांकी ना तो नाटक का संक्षिप्त रूप है ना वह नाटक का एक अंक हैं ।एकांकी स्वयं में पूर्ण रचना है।
एकांकी के तत्व
- कथावस्तु
- चरित्र चित्रण
- कथोपकथन
- संकलन
- संघर्ष
- भाषा शैली
- उद्देश्य
1 कथावस्तु– एकांकी की कथावस्तु किसी एक मार्मिक घटना पर आधरित होता है । इसका आरम्भ कौतुहल पूर्ण होता है ।मार्मिकता ,परिधि ,संकोच, प्रभावित या उद्देश्य कथावस्तु के अनिवार्य तत्व होते है। यह कथावस्तु एक अंक तथा कई दृश्यों में होता है।
2- पात्र का चरित्र चित्रण– एकांकी में पात्रों की संख्या कम होती है। इसमें एक प्रधान पात्र होता है। इसके इर्द-गिर्द दूसरे पात्र होते हैं पात्रों के क्रियाकलापों के द्वारा कथन के द्वारा पात्रों के चरित्र चित्रण किया जाता है।
3 कथोपकथन– एकांकी की संवाद योजना बहुत ही सुस्त ,संक्षिप्त ,सरल तथा गतिशील होता है। इसके माध्यम से कथा का विकास एवं चरित्रों के ऊपर प्रभाव पड़ता है। एकांकी संवाद प्रमुख रचना है।
4 संकलन या वातावरण – देश काल तथा घटनाओं कीअन्विति अर्थात एकांकी की घटना एक देश एक कॉल तथा एक प्रभाव संयुक्त होना चाहिए। तभी तो उसके वातावरण में स्वाभाविक सजीवता तथा सहज आता है । जो एकांकी को प्रभावपूर्ण बनाती है।
5 संघर्ष – आधुनिक एकांकी में घात प्रतिघात तथा अन्य मनो दशाओं का चित्र अनिवार्य होता है।
6 भाषा शैली– एकांकी की भाषा सरल तथा पात्रों के अनुकूल होती है। विषय की गंभीरता के अनुकूल भाषा भी गंभीर होता है।
7 अभिनेता – अभिनेता किसी की रचना की जान होती है। एकांकी में दृश्यों का संयोजन इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे कि वह रंगमंच पर अभिनीत हो सके। इसलिए एकांकी की संवाद योजना रंग विधान अभिनेता की दृष्टि से सुयोजित होते हैं।
8- उद्देश्य – एकांकी में कोई न कोई प्रभावती होता है जो एक प्रभाव एकांकी की चरम सीमा पर जाकर व्यक्त हो जाती है।
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