छत्तीसगढ़ त्यौहार
हरेली
यह मुख्य रूप से किसानों का पर्व है यह भादों की श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है यह छत्तीसगढ़ अंचल में प्रथम पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
यह हरियाली के उल्लास का पर्व है इस पर्व में धान की बुवाई के बाद श्रावण मास की अमावस्या को सभी उपकरण की पूजा की जाती है ।इस दिन बच्चे बांस की जोड़ी बनाकर घूमते एवं नाचते हैं इस दिन जादू टोने की भी मानता है।
इस दिन बैगा जनजाति के लोग द्वारा फसल को रोग मुक्त करने के लिए ग्राम देवी देवताओं की पूजा पाठ भी की जाती है इस पर्व के अवसर पर लोग नीम की टहनियां अपने घरों के दरवाजों पर लगाते हैं।
भोजली
यह पर्व रक्षाबंधन के दूसरे दिन भाद्र मास में मनाया जाता है इस दिन लगभग 1 सप्ताह पूर्व बोये गए गेहूं धान आदि के पौधे रूपी भोजली का विसर्जन किया जाता है इस अवसर पर भोजली के गीत गाए जाते हैं भोजली का आदान प्रदान किया जाता है और देवी गंगा लहर ,तिरंगा भोजली पर्व का प्रसिद्ध गीत है।
हलषष्टि
इस पर्व को हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाएं भूमि में गड्ढा बनाकर शिव पार्वती की पूजा अर्चना करती है और उपवास भी करती है। तथा अपने पुत्र की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस दिन चावल दही एवं अन्य छह प्रकार की भाजी लाई महुआ आदि का सेवन किया जाता है।
पसहर, धान, बिना जुताई के जमीन ,पानी भरे गड्ढे आदि में खुद ही उगाता है कमरछठ के दिन उपवास रखने वाली स्त्रियां को जूते किए हुए जमीन में उपजे किसी भी चीज का सेवन वर्जित है।
पोला
इस पर्व को भाद्र मास में मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने बैलों को सजा कर पूजा अर्चना करते हैं इस दिन बैल दौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित किया जाता है। इस दिन बच्चे मिट्टी के बैलों को सजा कर उसकी पूजा अर्चना करते हैं तथा उसके साथ खेलते हैं।
छेरछेरा
यह पर्व पूस माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है यह पर्व पुश पुन्नी के नाम से मनाया जाता है । इस पर्व के अवसर पर बच्चे नई फसल के धान मांगने के लिए घर-घर अपनी दस्तक देते हैं। यह उत्साह पूर्वक लोगों के घर जाकर छेरछेरा कोठी के धान ल हेरत हेरा कहकर धान मांगते हैं ।
जिसका अर्थ अपने भंडार से धान निकालकर हमें दो होता है यह पर्व पहले काफी महत्वपूर्ण माना जाता था परंतु समय के साथ-साथ यह पर्व वर्तमान में अपना महत्व खोता जा रहा है इस दिन लड़कियां प्रसिद्ध अंचल का प्रसिद्ध सुआ नृत्य करती हैं।
मेघनाद
यह पर्व फागुन माह में राज्य के गोंड आदिवासी द्वारा मनाया जाता है ।कहीं-कहीं पर यह चैत्र इस माह में भी मनाया जाता है अलग-अलग तिथियों में मानने के उद्देश अलग-अलग स्थानों के पर्व में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करना है।
गोंड आदिवासी समुदाय के लोग मेघनाद को अपना सर्वोच्च देवता मानते हैं ।मेघनाद का प्रतीक एक बड़ा सा ढांचा आयोजन के मुक्त दिवस के पहले खड़ा किया जाता है यही मेघनाथ मेला आयोजित होता है। इस ढांचे के चार कोनों में चार एवं बीच-बीच एक कुल 5 खंबे होते हैं जिसे गैरों एवं तेल से पोता जाता है।
मेघनाथ का संपूर्ण ढांचा गोंड के खंडेरादेव का प्रतीक माना जाता है । पारंपरिक रूप से इस आयोजन में खंडेरा देव का आह्वान किया जाता है और मनौती मांगा जाता है मनौती मनाने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है।
इसके लिए मनौती लेने वाले को मेघनाथ के ढांचे के बीच स्थित खंभे में उल्टा लटका कर घूमना होता है यह इस पर्व का मुख्य विषय भी है। इस पर्व के अवसर पर गांव में मेले का माहौल बन जाता है संगीत एवं नृत्य का क्रम स्वयं निर्मित हो जाता है ।
मेघनाद के ढांचे के निकट स्त्री नृत्य करते समय खंडेरा देव के अपने शरीर में प्रवेश का अनुभव करती है ।यह आयोजन गोंड जनजाति में आपदाओं पर विजय पाने का विश्वास उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
तीजा
यह छत्तीसगढ़ का परंपरागत त्यौहार है इस त्यौहार के अवसर पर भाद्र मास में माता-पिता अपनी ब्याही लड़कियां को उसके ससुराल से मायके लाते हैं तीजा में स्त्रियां निर्जला उपवास रखती हैं दूसरे दिन स्त्री शिव पार्वती की पूजा अर्चना के पश्चात अपना उपवास तोड़ती है।
सरहुल
यह उरांव जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है इस अवसर पर प्रतीकात्मक रूप से सूरज देव और धरती माता का विवाह रचाया जाता है। इस अवसर पर मुर्गे की बलि भी दी जाती है। अप्रैल महीने के शुरुआत में जब साल वृक्ष झडते हैं तब यह पर्व को मनाया जाता है मुर्गे को सूर्य तथा काली मुर्गी को धरती माता का प्रतीक मानकर उसे सिंदूर लगाया जाता है तथा उनका विवाह संपन्न कराया जाता है बाद में मुर्गी और मुर्गी की बलि चढ़ा दी जाती है।
बीज बोहानी
यह कोरबा जनजाति का महत्वपूर्ण पर्व है यह पर्व कोरवा जनजाति के लोगों द्वारा बीज बोने से पूर्व काफी उत्साह से बनाया जाता है।
रतौना
यह बैगा जनजाति का प्रमुख त्यौहार है इस त्यौहार का संबंध नागा बैगा से है।
मातर
या छत्तीसगढ़ के अनेक हिस्सों में दीपावली के तीसरे दिन मनाया जाने वाला एक मुख्य त्योहार है मातार मातृ पूजा कुल देवता की पूजा का त्यौहार है यहां के आदिवासी एवं यादव समुदाय के लोग इसे मनाते हैं यह लोग लकड़ी के बने अपने कुलदेवता और खोडहर देव की पूजा अर्चना करते हैं राउत लोगों के द्वारा इस अवसर पर पारंपरिक वेशभूषा में रंग-बिरंगे परिधानों में लाठियां लेकर नृत्य किया जाता है।
कर्मा
यह ओरांव बैगा, बिंझवार ,गोंड आदि जनजातियों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व कठोर वन्य जीवन और कृषि संस्कृति में श्रम के महत्व पर आधारित है। कर्म ही जीवन में प्रधानता इस पर्व का महत्वपूर्ण संदेश है यह पर्व भादो मास में मनाया जाता है । यह पराया धन रोकने और फसल कटाई के बीच के अवकाश काल का उत्तम है इसे एक तरह से अधिक उत्पादन के हेतु मनाया जाने वाला पर्व भी कहा जा सकता है।
इस अनुष्ठान का केंद्रीय तत्व कर्म वृक्ष है ।कर्म वृक्ष की डालिया काटकर उसे अखाड़ा या नाच के मैदान में गाड़ दिया जाता है ।तथा उसे कर्म राजा की संज्ञा दी जाती है। इस अवसर पर करमा नृत्य का आयोजन किया जाता है दूसरे दिन कर्म संबंधी गाथा कही जाती है।
तथा कई प्रकार के अनुष्ठान भी किए जाते हैं गोंड लड़कियां इस अवसर पर गरबा की तरह छेद वाली मटकिया जिसमें जलते हुए दिए रखे होते हैं ।सिर पर रखकर गांव में घर-घर घूमती है इसके बदले में उन्हें खाद्य सामग्री है तथा पैसे मिलते हैं।
ककसार
यह पर्व अबूझमाड़ के आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है इस उत्सव या अन्य त्योहारों की आयोजन अवधि के बाद खाली समय में मनाया जाता है । इस अवसर पर युवक और युवती एक दूसरे के गांव में नित्य करने के लिए पहुंचते हैं इस पर्व का संबंध अबूझमाड़ के विशिष्ट मान्यता से है ।
जिसके अनुसार वर्ष की फसलों में जब तक बालियां नहीं छूटती स्त्री पुरुषों का एकांत में मिलना वर्जित माना जाता है बालियां फूट जाने पर इस उत्सव के माध्यम से यह वर्जना तोड़ दी जाती है ।
इसमें स्त्री पुरुष अपने अपने अर्धवृत्त बनाकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य का आयोजन लगभग सारी रात जारी रहता है ।इस नृत्य में उसी धुन और ताल का प्रयोग किया जाता है ।जो विवाह के समय प्रयोग किया जाता है इस के अवसर पर वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए जाते हैं। इस तरह यह अविवाहित लड़के लड़कियों के लिए अपने जीवनसाथी चुनने का अवसर होता है ।
यह त्यौहार बस्तर की मुंडिया जाति का पूजा नृत्य भी है मुंडिया गांव के धार्मिक स्थल पर एक बार इस पर पूजा का आयोजन किया जाता है जिसमें मुंडया जनजाति के लोग अपने इष्ट देव लिंगदेव को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए पुरुष कमर में लोहे या पीतल की घंटियां बांधकर हाथ में छतरी लेकर सिर में सजावट करके रात भर सभी राज्यों के साथ नृत्य गायन करते हैं।
स्त्रियां विभिन्न प्रकार के फूलों और मोतियों की माला पहनती है इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत को ककसरा पाटा कहते हैं