कबीर दास का कला पक्ष , भाव पक्ष , रचनाएँ
कबीरदास जी का प्रमुख ग्रंथ बीजक है । कबीर दास जी एक बहुत ज्ञानी व्यक्ति थे। उन्होंने उस समय की स्थिति को देखते हुए जो लिखा वो बहुत प्रेरणा दयाक है आज के समय में भी।
जिसके तीन भाग है
- साखी
- सबद
- रमैनी
अन्य कृतियों में
- शब्दावली
- कबीर ग्रंथावली
- अनुराग सागर
- साखी ग्रंथ
कबीरदास का भाव पक्ष
कबीरदास जी निर्गुण, निराकार ब्रह्म के उपासक थे । उनकी रचनाओं में राम शब्द का प्रयोग कई बार हुआ है । निर्गुण ईश्वर की आराधना करते हुए भी कबीरदास महान समाज सुधारक माने जाते है । वे हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्म के लोगों के कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया । और उन्हें जगाने का प्रयास किया ।
कबीरदास का कला पक्ष
कबीर दास सांधु संतों की संगति में रहने के कारण उनकी भाषा में ब्रज, फारसी, राजस्थानी, भोजपुरी तथा खड़ी बोली के शब्दों का प्रयोग बहुत हुआ है । इसलिए इनकी भाषा को साधुक्कड़ी तथा पंचमेल कहा जाता है । इनके काव्य में दोहा शैली तथा गेय पदों में पद शैली का प्रयोग हुआ है । हास्य, तथा शांत रस का प्रयोग मिलता है ।
कबीरदास का साहित्य में स्थान
कबीरदास ने अपने उपदेशों में ईश्वर का विश्वास, गुरु पर विश्वास अहिंसा और सदाचार पर बल दिया है । अपने गुरु रामानन्द के उपदेशों के कारण इन्हें वेदान्त और उपनिषद का ज्ञान हुआ । कबीर दास निर्गुण भक्ति भक्ति, धारा में ज्ञान मार्ग के परवर्तक कवि है । इनके मृत्यु के पश्चात कबीर पंथ का प्रचलन का शरुवात हुआ ।