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प्राचीन भारत का इतिहास |Prachin Bharat Ka Itihas

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प्राचीन भारत का इतिहास

भारत के पुरातात्विक संस्कृति और ऐतिहासिक परंपरा अत्यंत समृद्धि और गौरवशाली रहा है ।प्राचीन भारत के इतिहास में सिंधु एवं सरस्वती सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता, वैदिक सभ्यता ,महाकाव्य काल ,बौद्ध एवं जैन धर्म ,मौर्य साम्राज्य ,गुप्त साम्राज्य एवं हर्ष साम्राज्य शामिल है।Prachin Bharat Ka Itihas

इन सभ्यताओं एवं राजवंशों की अपनी विशेषता रही है। प्राचीन काल से ही भारतीयों में ऐतिहासिक चेतन विद्यमान थी। आप प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाली सामग्री पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।(Prachin Bharat Ka Itihas)

साहित्यिक स्रोत

भारतीय साहित्य में लौकिक एवं धार्मिक दोनों ही प्रकार के अंश प्राप्त होते हैं। वेद ऋग्वेद ,सामवेद, यजुर्वेद ,अथर्ववेद उपनिषदों वेदांग सूत्रों महाकाव्य रामायण और महाभारत, स्मृतियां ,पुराण ,पुराण ,बौद्ध साहित्य ,जैन साहित्य ज़मुद्राराक्षस, अर्थशास्त्र, राजतरंगिणी ,अष्टाध्यायी आदि कई प्रकार के साहित्यिक स्रोत प्राचीन काल से भारत के भौगोलिक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक धार्मिक एवं आर्थिक जानकारी के प्रमुख स्रोत रहे हैं।

पुरातात्विक स्रोत

पुरातात्विक सामग्री प्राचीन भारत के अध्ययन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत है ।अभिलेख शिलालेख स्तंभ लेख ताम्रपत्र लेख भोजपत्र मूर्ति लेख मुद्रा स्मारक आदि पुरातात्विक सामग्री की खोज उत्खनन एवं अध्ययन से प्राचीन इतिहास के अध्ययन में सहायता प्राप्त होती है।

विदेश की यात्रा विवरण

विदेशी लेखक से हमें उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है, ईरानी ,यूनानी ,चीनी ,तिब्बत ,अरबी आदि देशों के व्यापारी यात्री राजदूत विद्वानों आदि के विवरणों से प्राचीन भारत(Prachin Bharat Ka Itihas) के समाज की विभिन्न अवस्था के अध्ययन की सामग्री उपलब्ध होती है, तथा विदेशी यात्रियों में से अनेक के स्मरण से प्रभावित होने के कारण पूर्ण रूप से प्रामाणिक नहीं माने जा सकते हैं। फिर भी भारतीय इतिहास के अध्ययन में इनका महत्वपूर्ण स्थान है।

सिंधु घाटी सभ्यता

भारत और पाकिस्तान के उत्तरी पश्चिमी भाग में सिंधु सभ्यता उसकी सहायक नदियों की घाटियों में जो नगर सभ्यता विकसित हुई उसे सामान्यत: सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है ।भगोलिक दृष्टि से यह विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता थी ।इस सभ्यता का विस्तार पाकिस्तान, दक्षिणी अफगानिस्तान तथा भारत के राजस्थान ,गुजरात ,जम्मू कश्मीर, पंजाब ,हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र तक फैला हुआ था।Prachin Bharat Ka Itihas

इस सभ्यता के प्रमुख स्थल हैं मोहनजोदड़ो ,हड़प्पा तथा रोपण ,सौराष्ट्र ,लोथल ,धोलावीरा ,कालीबंगा राखी गढ़ी, जम्मू कश्मीर, आलमगीरपुर ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं इनमें हमें प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग के बारे में ज्ञात होता है।

वैदिक सभ्यता

ऋग्वेद ,यजुर्वेद, सामवेद ,अथर्ववेद इन चारों वेदों एवं अन्य समकालीन साहित्य लेखन के कल को वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है। संपूर्ण वैदिक काल एक लंबे कालखंड को सूचित करता है।

इसे हम दो भागों में विभाजित करके अध्ययन करते हैं पूर्व ऋग्वेद समय जिसमें ऋग्वेद की रचना की गई और वैदिक काल में शेष तीनों  की रचना हुई।  इसका काल 1000 ईसा पूर्व से 600 इस पर्व माना जाता है। इसी काल में पुराण उपनिषद महाकाव्य व स्मृति को रखा जाता था।

महाकाव्य कालीन सभ्यता

रामायण और महाभारत भारतवर्ष के दो महान महाकाव्य है। उनकी रचना काल के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन रामायण महाभारत से अधिक प्राचीन है ,रामायण में अयोध्या व मिथिला तथा महाभारत में कुरुक्षेत्र इंद्रप्रस्थ हस्तिनापुर द्वारका आदि नगरों का उल्लेख मिलता है । पुरातात्विक उत्खनन ने सिद्ध किया है कि प्राय: इन नगरों का अस्तित्व पहले था।

इस काल में राजतंत्र एवं गणतंत्र दोनों प्रकार के राज्य थे । राजा का पद वंशानुगत था लेकिन राजा अपने धर्म और कर्तव्य से नियंत्रित था । राजा की सहायता के लिए दो संस्थाएं मंत्री परिषद और सभा होता था प्रदर्शन की सुविधा के लिए राज्य कई इकाइयों में विभक्त था महाभारत में गणराज्य का उल्लेख मिलता है।

जनपद और महाजनपदों का युग

प्रारंभ में आर्य लोग पंजाब में सतलज ,झेलम और वायस तथा सरस्वती नदियों की घाटियों में रहते थे। धीरे-धीरे दक्षिण पूर्व की ओर से वे गंगा के उपजाऊ प्रदेश में बसने लगे,  जंगलों को साफ कर उन्होंने खेती के लिए जमीन तैयार की यहां जनपद बसाए और जनपद का मतलब है मनुष्य के बसने का एक क्षेत्र । Prachin Bharat Ka Itihas

जनपदों के नामकरण उनके स्थापना करने वाले जन या राजा ।   महाभारत में अनेक जनपदों का भी उल्लेख मिलता है बड़े एवं शक्तिशाली जनपदों को महाजनपद कहा जाता था।  उनके अधीनस्थ कुछ छोटे जनपद होते थे इसी काल में बहुत से ऐसे राज्य थे । जहां वंशागत राजा नहीं थे.

इन राज्यों को गढ़संघ कहा जाता था ।यहां के राज्य के राजा को जनता चुनती थी जैसे कि आज हम अपनी सरकार चुनते हैं

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