सविनय अवज्ञा आंदोलन, savinay avagya andolan in hindi
सविनय अवज्ञा आंदोलन गांधी जी ने आंदोलन प्रारंभ करने से पहले सरकार की हट धर्मिता को जनता के सामने लाने के लिए यंग इंडिया में एक लेख प्रकाशित किया इस लेख में उन्होंने सरकार के सामने कुछ शर्तें रखी और वादा किया कि यदि सरकार इन शर्तों को स्वीकार कर ले तो सत्याग्रह नहीं किया जाएगा
- रुपए का विनिमय दर घटाकर एक सीलिंग 4 पेंस की जाए.।
- लागत में 50% की कमी की जाए।
- बड़े सरकारी अफसरों का वेतन आधा कर दिया जाए।
- सेना के खर्चों में कम से कम 50% की कटौती की जाए।
- विदेशी कपड़ों का आयात नियंत्रित किया जाए।
- भारतीय समुद्र तट केवल भारतीय जहाजों के लिए सुरक्षित हो।
- सीआईडी विभाग को समाप्त किया जाए एवं उस पर सार्वजनिक नियंत्रण हो।
- आत्मरक्षा हेतु भारतीयों को अग्नि अस्त्र रखने की इजाजत हो।
- नमक पर सरकारी एकाधिकार एवं नमक टैक्स बंद हो।
- नशीली वस्तुओं के विक्रय को पूर्णता बंद कर दिया जाए।
- उन राजनैतिक बंधुओं को छोड़ दिया जाए जिन पर हत्या करने का आरोप ना हो।
सरकार ने इन शर्तों को मानने से इंकार कर दिया पूरे देश में खुफिया पुलिस लगा दी गई आज सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता को गिरफ्तार कर लिया गया सरकार द्वारा शांति और समझौता का द्वार बंद कर दिए जाने पर गांधीजी को यह तय करना था कि सविनय अवज्ञा आंदोलन किस रूप में शुरू किया जाए आंदोलन प्रारंभ करने से पहले गांधी जी ने 2 मार्च 1930 को वायसराय को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने भारत पर ब्रिटिश शासन के दुष्प्रभाव और उन 11 मांगों की चर्चा की।
उन्होंने लिखा कि यदि सरकार उन मांगों को पूरा नहीं करती तो वह 12 मार्च को नमक कानून का उल्लंघन करेंगे यह निर्णय लिया गया कि पहले हुए और उनके कुछ साथी नमक कानून तोड़ेंगे सामूहिक रूप से सविनय अवज्ञा आंदोलन तभी शुरू किया जाएगा जब वे गिरफ्तार कर लिए जाएंगे या वे इसके लिए जनता से कहेंगे।
दांडी यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन
गांधी जी को वाया सराय लॉर्ड अरविंद द्वार दिए गए जवाब से घोर निराशा हुई गांधी जी ने कहा मैंने रोटी मांगी थी और मुझे पत्थर मिला प्रतिक्षा एवं वार्ता की घड़ी समाप्त हो गई थी पूरे योजना के अनुसार 12 मार्च 1930 को गांधीजी अपने चुने हुए 78 अनुयायियों के साथ समुद्र के किनारे किनारे दांडी के लिए चल पड़े करीब 200 मिल की पदयात्रा 24 दिनों में पूरी करके वह 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे 6 अप्रैल को गांधीजी ने समुद्र तट से नमक इकट्ठा कर नमक कानून का उल्लंघन किया 6 अप्रैल के बाद देशव्यापी सत्याग्रह एवं आंदोलन प्रारंभ हो गया।
आंदोलन का विकास एवं सरकारी दमन चक्र
गांधीजी आंदोलन को अपने 11 सूत्री कार्यक्रम की सीमा के अंदर रखना चाहते थे परंतु आंदोलन शीघ्र ही उन सीमाओं को पार कर गया। छात्र स्कूल कॉलेज छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े मजदूरों ने हड़ताल और किसानों ने लगान बंदी का रास्ता अपनाया। इस आंदोलन की विशेषता यह थी कि अधिकांश जुलूस शांतिपूर्ण रहे।
नेताओं की अनुपस्थिति में भी कई प्रांतों में कर बंदी आंदोलन सफलतापूर्वक चलता रहा। परंतु आंदोलन जैसे-जैसे तेज होता गया दमन चक्र भी उसी गति से तेज होता गया। नए नए अध्यादेश जारी किए गए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने डंडे बरसाए गोलियां चलाई लोगों की संपत्ति जप्त की।
सत्याग्रह करने वालों पर की गई दुर्व्यवहार के विरोध में गांधी जी ने दूसरी यात्रा का कार्यक्रम बनाया। उन्होंने सरकार से नमक कर हटाने का अनुरोध किया और कहा कि ऐसा नहीं करने पर धारासाढ़ के नमक कारखाने पर कब्जा कर लिया जाएगा। 4 मई को 24:00 महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर यरवदा जेल भेज दिया गया।
गांधी जी के गिरफ्तारी के विरुद्ध उग्र प्रतिक्रिया हुई अधिकांश शहरों में हड़ताल हुई। रेल कारखानों के मजदूरों मिल मजदूरों ने हड़ताल में भाग लिया। सोलापुर में जुलूस और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें कई लोग मारे गए। नमक कारखाने पर धावा बोला गया।
आंदोलन का व्यापक महत्व
सन 1930 के दौरान आंदोलन जितना व्यापक और शक्तिशाली हो गया था उसका अनुमान ना तो शासन ने लगाया था और ना ही कांग्रेस ने। आंदोलन ने कर बंदी शराबबंदी नमक सत्याग्रह जल सत्याग्रह सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार कर दिया असहयोग आदि कई रूप धारण किए।
इस आंदोलन की विशेषता यह थी कि इसे किसान और मजदूर वर्ग का व्यापक समर्थन मिला। ब्रिटिश शासन ने इसे दबाने के लिए मार्शल ला गिरफ्तारी विशेष अदालतों प्रतिबंध जैसे दमनकारी तरीकों का खुलकर प्रयोग। दमन के बावजूद आंदोलन की व्यापकता और उग्रता ने ब्रिटिश शासन के खेमे में बेचैनी पैदा कर दी।
भारत की असंगठित एवं शांत राष्ट्रीयता एक होकर अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ चली थी। भारतीयों में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अदम्य साहस त्याग एवं राष्ट्रप्रेम की भावना बलवती हो गई थी देश में नवीन जागृति आ गई थी।
गांधी इरविन समझौता 1931
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को यह आभास करा दिया कि कांग्रेश की सहमति के बिना कोई भी सुधार कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता। लार्ड डार्विन ने कांग्रेसका समर्थन एवं सद्भाव प्राप्त करने के लिए भारत की गंभीर स्थिति को हल्का करना आवश्यक समझा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की भी जेल से रिहाई हो गई।
गांधी जी एवं कांग्रेस के अन्य नेताओं को वयसराय से बात करने के लिए तैयार कर लिया गया। गांधीजी 19 फरवरी 1931 को डार्विन से मिले 15 मार्च को दोनों के बीच एक समझौता हुआ जिसे गांधी इरविन समझौता कहते हैं।
समझौते की शर्तें
गांधीजी ने इस समझौते में निम्नांकित शब्दों को स्वीकार किया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित कर दिया जाएगा।
- ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार बंद कर दिया जाएगा।
- कांग्रेश द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
- रक्षा विदेश संबंध तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा ब्रिटिश सरकार की होगी।
सरकार की ओर से डार्विन ने निम्न शर्तों को मानी
- सविनय अवज्ञा आंदोलन से संबंधित सभी अध्यादेश को वापस लिया जाएगा।
- आंदोलन में भाग लेने वाले नेताओं को रिहा किया जाएगा सैनिकों को नहीं।
- जप्त की गई संपत्ति वापस की जाएगी।
- शराब और अफीम की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना की इजाजत होगी।
- शांतिपूर्ण तरीके से समुद्र किनारे रहने वाले लोगों को नमक बनाने का अधिकार होगा गांधी इरविन समझौता की कई वर्गो एवं लोगों ने आलोचना की भारतीय राष्ट्रवादी समझौते से खुश नहीं था कि सारे संघर्ष एवं बलिदानों को बुलाकर अंग्रेजों के साथ समझौता किया गया नेहरू एवं सुभाष चंद्र बोस के समझौते का विरोध कर रहे थे। भगत सिंह एवं उनके साथियों को फांसी से बचा नहीं पाने के कारण इस समझौते की आलोचना की गई ब्रिटिश नौकरशाही विटामिन की नीति से संतुष्ट नहीं था वह इस समझौते को ब्रिटिश सरकार की हार मान रही थी अतः डार्विन के जाने के बाद लार्ड विलिंगटन ने समझौते की शर्तो का उल्लंघन प्रारंभ कर दिया।
- गांधी डरविंग समझौते को मार्च 1932 में हुए कराची कांग्रेस अधिवेशन मैं स्वीकार कर लिया गया। इस समझौते की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही थी की पहली बार सरकार ने किसी भारतीय नेता के साथ समानता के स्तर की बातचीत की इसे राष्ट्रीय आंदोलन को शक्ति मिली।